अर्पण 7 मार्च 2013
कहाँ हैं भगवान ?
एक आदमी हमेशा की तरह अपने नाई की दूकान पर बाल कटवाने गया. बाल कटाते वक़्त अक्सर देश-दुनिया की बातें हुआ करती थीं …. आज भी वे सिनेमा, राजनीति, और खेल जगत, इत्यादि के बारे में बात कर रहे थे कि अचानक भगवान् के अस्तित्व को लेकर बात होने लगी.
नाई ने कहा, मैं भगवान् के अस्तित्व में यकीन नहीं रखता. आप ही बताइए कि अगर भगवान् होते तो क्या इतने लोग बीमार होते? इतने बच्चे अनाथ होते? अगर भगवान् होते तो किसी को कोई दर्द कोई तकलीफ नहीं होती”, नाई ने बोलना जारी रखा, “मैं ऐसे भगवान के बारे में नहीं सोच सकता जो इन सब चीजों को होने दे. आप ही बताइए कहाँ है भगवान?”
आदमी एक क्षण के लिए रुका , कुछ सोचा , पर बहस बढे ना इसलिए चुप ही रहा .
नाई ने अपना काम ख़तम किया और आदमी कुछ सोचते हुए दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे एक लम्बी दाढ़ी – मूछ वाला अधेड़ व्यक्ति उस तरफ आता दिखाई पड़ा , उसे देखकर लगता था मानो वो कितने दिनों से नहाया-धोया ना हो .
आदमी तुरंत नाई कि दुकान में वापस घुस गया और बोला , “ जानते हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”
“भला कैसे नहीं होते हैं ?” , नाई ने सवाल किया , “ मैं साक्षात तुम्हारे सामने हूँ!! ”
“नहीं ” आदमी ने कहा , “ वो नहीं होते हैं वरना किसी की भी लम्बी दाढ़ी – मूछ नहीं होती पर वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”
“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन बहुत से लोग हमारे पास नहीं आते .” नाई बोला
“बिलकुल सही ” आदमी ने नाई को रोकते हुए कहा ,” यही तो बात है , भगवान भी होते हैं पर लोग उनके पास नहीं जाते और ना ही उन्हें खोजने का प्रयास करते हैं, इसीलिए दुनिया में इतना दुःख-दर्द है.”
“शिक्षा सर्वोत्तम मित्र है। शिक्षित व्यक्ति का सभी जगह आदर होता है। शिक्षा सुंदरता और यौवन को भी मात देती है।” – चाणक्य
“मौके का सतर्कता से ध्यान रखना; मौके को हिम्मत और तरक़ीब से कब्ज़े में लेना और हाथ आए मौके से पूरे ज़ोर व धुन के साथ अधिकतम उपलब्धि हासिल करना - ये ही सफ़लता प्राप्त करने के सामरिक गुण हैं।” - ऑस्टिन फ़ेल्प्स
“अपने बच्चों को पहले पाँच वर्षों तक लाड़ प्यार करें। अगले दस वर्षों तक उनमें दोष निकालें और उन्हें अनुशासित करें। जब तक वे सोलह साल के हो जाएं तो उनसे मित्रवत व्यवहार करें। आपके बड़े हो चुके बच्चे आपके सर्वोत्तम मित्र होते हैं।” – चाणक्य
“अपने कर्मों के प्रति बहुत ज्यादा संकोची और हिचकिचाहटपूर्ण मत बनिए। पूरा जीवन एक अनुभव है।” - राल्फ वाल्डो एमरसन
“कोई भी काम शुरु करने से पहले स्वयं से तीन प्रश्न पूछें - मैं यह काम क्यों कर रहा हूँ, इसके क्या परिणाम हो सकते हैं और क्या मैं सफ़ल रहूँगा। इन तीनों प्रश्नों पर गहरे विचार के बाद यदि आप इनके उत्तर संतोषप्रद पाएं तभी आगे बढ़ें। जब आप किसी योजना पर काम शुरु कर दें तो असफ़लता का डर न रखें और उसे अधूरा न छोड़ दें। पूरे मनोयोग से काम करने वाले व्यक्ति ही सबसे अधिक प्रसन्न रहते हैं।” – चाणक्य
“उन लोगों से दूर रहें जो आप आपकी महत्वकांक्षाओं को तुच्छ बनाने का प्रयास करते हैं. छोटे लोग हमेशा ऐसा करते हैं, लेकिन महान लोग आपको इस बात की अनुभूति करवाते हैं कि आप भी वास्तव में महान बन सकते हैं.” - मार्क ट्वेन
“जीवन की चुनौतियों का अर्थ आपकी विकलांगता नहीं है; उनका उद्देश्य आपको इस बात की खोज में सहायता करना है कि आप कौन हैं।” - बर्नेस जानसन रीगन
“ईश्वर अपने बच्चों से तीन अनुरोध करते हैं: जितना सर्वोत्तम कर सको उतना करो, जहाँ हो वहाँ करो, जो आपके पास उपलब्ध हो उससे करो, और अभी करो।” - एक कहावत
सोर्स शब्दकोश डॉट कॉम
“आज की शुरुआत कल के टूटे टुकड़ों से न करें।” – अज्ञात
“चरित्र को बनाए रखना आसान है, उस के भ्रष्ट हो जाने के बाद उसे सुधारना कठिन है।” - टॉमस पेन (१७३७-१८०९), लेखक एवं राजनीतिक सिद्धांतकार
“जीवन की आधी असफलताओं का कारण व्यक्ति का अपने घोड़े के छ्लांग लगाते समय उस की लगाम खींच लेना होता है।” - चार्ल्स हेयर
“What some people mistake for the high cost of living is really the cost of living high.” - Doug Larson “कुछ लोग जिसे ग़लती से जीवन स्तर की बढ़ती कीमतें समझ बैठते हैं, वह वास्तव में बढ़ चढ़ कर जीने की कीमत होती है।” - डग लारसन
“छोटी छोटी बातों का आनंद उठाइए, क्योंकि हो सकता है कि किसी दिन आप मुड़ कर देखें तो आप को अनुभव हो कि ये तो बड़ी बातें थीं।” - रॉबर्ट ब्राल्ट
“किसी काम को करने के बारे में बहुत देर तक सोचते रहना अक़सर उस के बिगड़ जाने का कारण बनता है।” - ईवा यंग
अर्पण 11 अप्रैल 2013
पराभव नाम का संवत्सर आरंभ (11 अप्रैल 2013)
हिंदू पंचांग गणना के अनुसार 11 अप्रैल 2013 से 30 मार्च 2014 तक विक्रम वर्ष 2070 में शक संवत 1935 रहेगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा और नवसंवत्सर का आरंभ गुरुवार 11 अप्रैल से हो रहा है। यह पूरा संवत्सर यानी साल 30 अप्रैल 2014 तक रहेगा यानी साल की अवधि 354 दिन है। संवत्सर का नाम पराभव होगा। इस साल 11 सोमवती अमावस्या, दो सोमवती पंचमी, 1 अंगारक चतुर्थी, 2 भानु सप्तमी, 2 बुधाष्टमी, 2 रवि दशमी हैं। कुल शुभ मुहूर्त 375 हैं। साल में 3 ग्रहण हैं जिसमें 1 चंद्र और 2 सूर्य ग्रहण होंगे।
वासन्तिक नवरात्र शुरु, कलश (घट) स्थापना, तिलक व्रत, विद्याव्रत, आरोग्यव्रत, गुडी पड़वा (महाराष्ट्र), गौतम ऋषि जयन्ती, आर्य समाज-स्थापना दिवस, नवीन चन्द्र-दर्शन, चैती चाँद (सिन्धी), झूलेलाल जयंती, बालेन्दु-पूजन
पहला नवरात्र, घट स्थापन और शैलपुत्री की पूजा (गुरुवार 11 अप्रैल)
घट स्थापन यानी पूजा स्थल में तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है जो लगातार नौ दिन तक एक ही स्थान पर रखा जाता है। घट स्थापना के लिए दुर्गा जी की मूर्ति जरूर होनी चाहिए। घटस्थापन हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, एक थाली में साफ चावल चाहिए। देवी की मूर्ति के अनुसार लाल कपड़े, मिठाई, सुगंधित तेल, सिंदूर, कंघा, आरती के लिए कपूर, 5 प्रकार के फल, पंचामृत जिसमें दूध, दही, शहद, चीनी और गंगाजल हो, साथ ही पंचगव्य, जिसमें गाय का गोबर, गाय का मूत्र, गाय का दूध, गाय का दही, गाय का घी भी पूजा सामग्री में रखना जरूरी है। घटस्थापन के दिन ही मिट्टी की परात में जौ भी बोए जाते हैं।
देवी शैलपुत्री : दुर्गा अपने पहले स्वरूप में पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान रहती हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया।
राजा की उदारता
नवभारत टाइम्स | Apr 3, 2013, 01.00AM IST
राजा भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्यण रहते थे। एक दिन गरीबी से परेशान होकर उन्होंने राजभवन में चोरी करने का निश्चय किया। रात में वे वहां पहुंचे। सभी लोग सो रहे थे। सिपाहियों की नजरों से बचते हुए वह राजा के कक्ष तक पहुंच गए। स्वर्ण, रत्न, बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे। किंतु वे जो भी वस्तु उठाने का विचार करते, उनका शास्त्र ज्ञान उन्हें रोक देता।
ब्राह्यण ने जैसे ही स्वर्ण राशि उठाने का विचार किया, मन में स्थित शास्त्र ने कहा- स्वर्ण चोर नर्कगामी होता है। जो भी वे लेना चाहते, उसी की चोरी को पाप बताने वाले शास्त्रीय वाक्य उनकी स्मृति में जाग उठते। रात बीत गई पर वे चोरी नहीं कर पाए। सुबह पकड़े जाने के भय से ब्राह्यण राजा के पलंग के नीचे छिप गए। महाराज के जागने पर रानियां व दासियां उनके अभिवादन हेतु प्रस्तुत हुई। राजा भोज के मुंह से किसी श्लोक की तीन पंक्तियां निकली। फिर अचानक वे रुक गए। शायद चौथी पंक्ति उन्हें याद नहीं आ रही थी। विद्वान ब्राह्यण से रहा नहीं गया। चौथी पंक्ति उन्होंने पूर्ण की।
महाराज चौंके और ब्राह्यण को बाहर निकलने को कहा। जब ब्राह्यण से भोज ने चोरी न करने का कारण पूछा तो वे बोले- राजन्, मेरा शास्त्र ज्ञान मुझे रोकता रहा। उसी ने मेरी धर्म रक्षा की। राजा बोले- सत्य है कि ज्ञान उचित-अनुचित का बोध कराता है, जिसका धर्म संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है। राजा ने ब्राह्यण को प्रचुर धन देकर सदा के लिए उनकी निर्धनता दूर की दी।
काशी की सड़क
नवभारत टाइम्स | Apr 9, 2013, 01.00AM IST
काशी की एक व्यस्त सड़क पर शाम के समय एक घायल महिला कराह रही थी। साथ में पड़ा उसका शिशु भी भूख से बिलख रहा था। राह चलते लोग उसे देखते, रुकते और फिर आगे बढ़ जाते। कुछ आपस में बड़बड़ाते-पता नहीं यह कौन है, कहां से आई है। हर किसी के चेहरे पर उसके प्रति घृणा और उपेक्षा का भाव था। कोई उसकी मदद कर झंझट में नहीं पड़ना चाहता था। थोड़ी देर बाद वहां से दो घोड़ों वाली एक बग्घी गुजरी।
घायल औरत और उसके बिलखते शिशु को देखकर उस पर सवार सज्जन ने बग्घी रुकवाई। कोचवान की सहायता से औरत और बच्चे को बग्घी में लिटाया। फिर कोचवान को आदेश दिया-सिविल अस्पताल चलो। कोचवान ने उन्हें टोकते हुए कहा- मगर साहब, अभी तो आपको एक जरूरी मीटिंग में जाना है। अस्पताल जाएंगे तो वहां पहुंचने में देरी हो सकती है।
इस पर उस सज्जन ने कहा- वहां के लोग तो मेरी प्रतीक्षा कर सकते हैं पर इन दोनों के लिए तो एक-एक पल भारी है। फिर वहां भी तो मुझे मानव परोपकार पर ही बोलना है। व्यवहार में मैं परोपकार न करूं और वहां इस पर भाषण दूं, क्या यह ठीक है? जल्दी अस्पताल चलो। कोचवान ने बग्घी अस्पताल की ओर मोड़ दी। अस्पताल में जब दोनों का उपचार शुरू हो गया तब उस सज्जन ने कोचवान से कहा- चलो अब मीटिंग में चलते हैं। वह सज्जन थे- पंडित मदनमोहन मालवीय।
मालवीय जी जरूरतमंद की सहायता करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे।
जीवन की जागीर
नवभारत टाइम्स | Apr 8, 2013, 01.00AM IST
तर्कशास्त्र के विद्वान पंडित रामनाथ ने नवद्वीप के पास एक निर्जन वन में विद्यालय स्थापित किया था। उसमें वे विद्यार्थियों को शास्त्रों का ज्ञान दिया करते थे। उस समय कृष्ण नगर में महाराज शिवचंद्र का शासन था। महाराज नीतिकुशल होने के साथ विद्यानुरागी भी थे। उन्होंने पंडित रामनाथ की चर्चा सुनी। उन्हें यह जानकर दु:ख हुआ कि ऐसा महान विद्वान गरीबी में दिन काट रहा है। महाराज स्वयं वहां गए। रामनाथ जी ने उनका उचित स्वागत किया।
राजा ने उनसे पूछा- पंडित प्रवर! मैं आपकी क्या मदद करूं? पंडित जी ने कहा- राजन! भगवत्कृपा ने मेरे सारे अभाव मिटा दिए है, अब मैं पूर्ण हूं। राजा कहने लगे- मैं घर खर्च के बारे में पूछ रहा हूं। पंडित जी बोले- घर के खर्चों के बारे में गृहस्वामी मुझसे अधिक जानती हैं। यदि आप को कुछ पूछना हो तो उनसे पूछ लें। राजा पंडित जी के घर गए और साध्वी गृहिणी से पूछा- माता जी घर खर्च के लिए कोई कमी तो नहीं है।
उस परम साध्वी ने कहा- महाराज! भला सर्व समर्थ परमेश्वर के रहते उनके भक्तों को क्या कमी रह सकती है? राजा बोले- फिर भी माता जी...। साध्वी बोलीं- महाराज! कोई कमी नहीं है। पहनने को कपड़े हैं, सोने के लिए बिछौना हैं। पानी रखने के लिए मिट्टी का घड़ा है। खाने के लिए विद्यार्थी सीधा ले आते है। भला इससे अधिक की जरूरत भी क्या है? राजा ने आग्रह किया- देवि। हम चाहते हैं कि आप को कुछ गांवों की जागीर प्रदान करें। इससे होने वाली आय से गुरुकुल भी ठीक तरह से चल सकेगा और आप के जीवन में भी कोई अभाव नहीं होगा। उत्तर में वह वृद्धा ब्राह्मणी मुस्कराई और कहने लगीं- प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा ने जीवन रूपी जागीर पहले से ही दे रखी है। जो जीवन की इस जागीर को संभालना सीख जाता है, उसे फिर किसी चीज का कोई अभाव नहीं रह सकता। राजा निरुत्तर हो गए।
स्त्री का स्वाभिमान
नवभारत टाइम्स | Apr 5, 2013, 01.00AM IST
राजा सुशांत सिंह एक धर्मपरायण और न्यायप्रिय शासक थे। वह अक्सर वेश बदलकर अपनी प्रजा का हालचाल जानते रहते थे। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके राज्य में रहने वाली एक महिला का पति गलत संगति में पड़ गया है और इससे नाराज होकर महिला ने अकेले रहना शुरू कर दिया है। महिला के पास रोजगार का कोई नियमित साधन नहीं था, इसलिए उसका जीवन बेहद कठिनाई में बीत रहा था। राजा वेश बदलकर उस महिला के पास पहुंचे।
उन्होंने कहा, 'देवी, आप अत्यंत कठिनाई में अपना जीवन गुजार रही हैं। क्या आप बिल्कुल बेसहारा हैं?' यह सुनकर स्त्री चौंककर बोली, 'आपसे किसने कहा, मैं बेसहारा हूं । मैं बिल्कुल बेसहारा नहीं हूं।' इस पर राजा बोले, 'पर आप रहती तो अकेली हैं।' महिला बोली, 'अकेले रहने का यह अर्थ नहीं है कि मैं बेसहारा हूं। मेरे तो तीन-तीन सहारे हैं।' राजा ने पूछा, 'आपके तीन सहाने कौन हैं? क्या मैं उनका नाम जान सकता हूं।' महिला बोली, 'बिल्कुल जान सकते हैं। मेरे दोनों हाथ, मेरा धर्म और मेरा ईश्वर मेरा सहारा हैं। अब आप ही बताइए जिस महिला के पास जगत के सबसे बड़े सहारे मौजूद हों, भला वह बेसहारा कैसे हो सकती है?'
महिला के इस जवाब ने राजा को निरुत्तर कर दिया। वह गर्व से बोले, 'जिस राज्य में आप जैसी स्वाभिमानी और कर्मठ महिला रहती हो, वह राज्य धनी है। मैं आपसे क्षमा चाहता हूं कि मैंने आपको बेसहारा कहा।' फिर उन्होंने उस महिला को अपना सही परिचय दिया। उन्होंने उस महिला को अपने महल की रसोई का कार्यभार संभालने का काम सौंप दिया।
भूल गया अपनी शादी
http://www.jagran.com/news/oddnews-due-to-busy-forgot-his-wedding-3954.html
बीजिंग। क्या कोई ऐसा भी हो सकता है जो अपनी शादी जैसे जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन की तारीख ही भूल जाए। जी हां, चीन का एक बिजनेसमैन काम के अधिक दबाव के चलते अपनी शादी के दिन को ही भूल गया। नतीजतन शादी के दिन मंडप में ही नहीं पहुंचा और रिश्ता बनने से पहले ही टूट गया। अपनी गलती से वह इतना शर्मिदा हुआ कि उसने सार्वजनिक रूप से अपनी मंगेतर से मांफी मांगी है। उसने अखबारों और इंटरनेट में विज्ञापन प्रकाशित करवाकर अपनी मंगेतर से क्षमा याचना की है। उसने गुजारिश करते हुए अपनी मंगेतर से कहा है कि वह उसके साथ जिंदगी बिताना चाहता है लिहाजा वह उसको एक मौका देते हुए उसके साथ शादी कर ले। मंगेतर ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।
दुल्हन भी खुद, दूल्हा भी खुद
www.jagran.com/News/Oddnews Mon, 01 Apr 2013 12:13 PM (IST)
परम्परा को चुनौती देते हुए एक ताईवानी महिला ने खुद से ही शादी कर ली। इतना ही नहीं, वह महिला अपना एकल हनीमून मनाने के लिए ऑस्ट्रेलिया भी जा रही है।
30 वर्षीया इन मोहतरमा का नाम चेन वेई-यीह है। इनके ऊपर शादी करने के लिए तगड़ा सामाजिक दवाब था और बदकिस्मती से इन्हें अपने लिए कोई उपयुक्त पार्टनर मिल नहीं रहा था। लिहाजा समाज की नजरों में खुद को शादीशुदा दिखाने के लिए उनके दिमाग ने अपने-आप से ही शादी कर लेने का आईडिया खोज निकला।
चेन ने अपनी यह अनोखी शादी, जिसमें दूल्हा भी वे खुद थीं और दुल्हन भी खुद, पूरे रस्मो-रिवाज से सम्पन्न करवाई। इस शादी पर लगभग 50000 ताईवानी मुद्रा का खर्च आया। चेन के शादी समारोह में उनके 30 दोस्तों ने भाग लिया।
अब गर्म नहीं होगी धूप में खड़ी कार
http://www.jagran.com/news/oddnews-keep-the-car-cool-in-the-hot-sun-3956.html
मेरठ। वेस्ट की उर्वर धरा में अनुसंधानों की नई फसल निखर रही है। यहां के मोहित गांधी ने एक ऑटोमेटिक डिवाइस बनाई है, जिसके प्रयोग से कड़क धूप में भी वाहन खासकर कार के अंदर का तापमान सामान्य बना रहेगा। प्रोजेक्ट को नेशनल अवार्ड मिला है, साथ ही शोध की गुणवत्ता को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जर्नल ने भी इसे विशेषांक में शामिल किया है। कई बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट की तकनीक के लिए छात्र के संपर्क में हैं।
धूप में खड़े वाहनों में अंदर का तापमान बाहर की अपेक्षा कई बार दो गुना तक बढ़ जाता है। कार में बच्चों को सोता छोड़ने से कई बार हादसा भी हो चुका है। अब तक इजाद तकनीक काफी महंगी और अपेक्षाकृत कम सफल साबित हुई है। मेरठ के शास्त्रीनगर के मैकेनिकल इंजीनियर मोहित गांधी ने महज दस हजार रुपये में माइक्त्रोकंट्रोलर युक्तहाइटेक डिवाइस तैयार की है। वाहन में तापमान बढ़ते ही डिवाइस सक्त्रिय हो जाएगा। इसमें एक एग्जास्ट फैन व एक ब्लोअर लगाया गया है। माइक्त्रोकंट्रोलर सर्किट में लगे तापमान सेंसर के इशारे पर स्वयं आन-ऑफ होंगे और वाहन के अंदर का तापमान सामान्य बना रहेगा।
हां, मैंने स्वर्ग देखा है
http://www.jagran.com/news/oddnews-yes-i-have-seen-heaven-3955.html
परलोक या स्वर्ग का अस्तित्व, मानव के लिए सदा से ही एक पहेली रहा है। जीते जी देखने को मिलता नहीं और मरने के बाद कोई बताने आता नहीं। लेकिन अब इस पहेली को सुलझाने का दावा किया है दक्षिण अफ्रीका के एक व्यक्ति ने।
सिबयुसिसो मैथेम्बू, नामक इस 64 वर्षीय व्यक्ति का दावा है कि वह चार बार स्वर्ग की यात्रा कर चुका है। उसने ये यात्राएं वर्ष 1998, 2004, 2006 और 2008 में की हैं। अपनी यात्राओं के आधार पर उसने स्वर्ग और वहां के निवासियों का एक मानचित्र भी बनाया है। उसके अनुसार वहां कुल 11 स्वर्ग हैं।
उसने बताया है कि कि गैब्रिएल नामक एक देवदूत उसके घर आया और उसे अपने साथ स्वर्ग ले गया। उसका दावा है कि वह ईसा मसीह और अन्य देवदूतों के साथ-साथ साक्षात् परमात्मा के भी दर्शन कर चुका है।
सिबयुसिसो मैथेम्बू, ने ये दावे एक अखबार के माध्यम से किये हैं।
शिवाजी महाराज को हुआ अभिमान
समय हर मनुष्य की परीक्षा लेता है। समय की परीक्षा में महापुरूष भी उलझकर रह जाते हैं फिर सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है। महापुरूषों का अभिमान चूर हुआ तो संसार के लिए प्रेरणा बन गये।
एक बार शिवाजी एक बड़ा दुर्ग बनवार रहे थे। दुर्ग निर्माण में सौकड़ों की संख्या में लोग लगे हुए थे। एक दिन दुर्ग निर्माण में लगे लोगों को देखकर शिवाजी के मन में अभिमान आया कि मेरे द्वारा दुर्ग निर्माण करवाने से कितने आदमियों का भरण-पोषण हो रहा है। धीरे-धीरे यह अभिमान उजागर होने लगा और बात शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास जी के पास पहुंच गयी।
स्वामी जी एक दिन अचानक शिवाजी के पास पहुंच गये। शिवाजी अपने गुरू को सामने देखकर हैरान रह गये। गुरूवर से शिवाजी ने पूछा आप आपका इस तरह अचानक पधराना कैसे हुआ। गुरू समर्थ रामदास जी ने कहा मैं तुम्हारी उन्नति और महत्ता देखने आया हूं। गुरूवर ने बातों की बातों में एक बड़े से पत्थर को देखकर कहा कि शिवाजी तुम इसे बीचों-बीच तोड़ दो।
गुरू की आज्ञा पाकर शिवाजी पत्थर को तोड़ने लगे। कुछ ही देर में पत्थर टूट गया और उसके खोखले भाग से एक मेंढक कूदकर बाहर आ गया। गुरूवर ने अपने संकेत से शिवाजी को समझाया कि जो ईश्वर पत्थर के अंदर मेढ़क का भरण-पोषण कर सकता है वहीं असल में सभी मनुष्यों का पालन-पोषण करने वाला है। शिवाजी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गुरूवर से अभिमान के लिए क्षमा मांगी।
एक हीरा व्यापारी था जो हीरे का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था, किन्तु गंभीर बीमारी के चलते अल्प आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी. अपने पीछे वह अपनी पत्नी और बेटा छोड़ गया. जब बेटा बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने कहा –
“बेटा, मरने से पहले तुम्हारे पिताजी ये पत्थर छोड़ गए थे, तुम इसे लेकर बाज़ार जाओ और इसकी कीमत का पता लगा, ध्यान रहे कि तुम्हे केवल कीमत पता करनी है, इसे बेचना नहीं है.”
युवक पत्थर लेकर निकला, सबसे पहले उसे एक सब्जी बेचने वाली महिला मिली.
“अम्मा, तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकती हो?” युवक ने पूछा.
“देना ही है तो दो गाजरों के बदले मुझे ये दे दो…तौलने के काम आएगा.”- सब्जी वाली बोली. युवक आगे बढ़ गया.
इस बार वो एक दुकानदार के पास गया और उससे पत्थर की कीमत जानना चाही. दुकानदार बोला,
“इसके बदले मैं अधिक से अधिक 500 रूपये दे सकता हूँ”
युवक इस बार एक सुनार के पास गया, सुनार ने पत्थर के बदले 20 हज़ार देने की बात की, फिर वह हीरे की एक प्रतिष्ठित दुकान पर गया वहां उसे पत्थर के बदले 1 लाख रूपये का प्रस्ताव मिला. और अंत में युवक शहर के सबसे बड़े हीरा विशेषज्ञ के पास पहुंचा. विशेषज्ञ ने ध्यान से पत्थर का निरीक्षण किया और बोला,
“यह तो एक अमूल्य हीरा है , करोड़ों रूपये देकर भी ऐसा हीरा मिलना मुश्किल है.”
ऐसा ही मूल्यवान हमारा मानव जीवन भी है. यह अलग बात है कि हममें से बहुत से लोग इसकी कीमत नहीं जानते और इसे मामूली समझ तुच्छ कामो में लगा देते हैं.
हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें इस मूल्यवान जीवन को समझने की सद्बुद्धि दे और हम हीरे के विशेषज्ञ की तरह इस जीवन का मूल्य आंक सकें .
Thursday 2 May 2013
न्यूयॉर्क। कपड़े धोने और प्रेस करने के झंझट से आजादी मिल जाए तो आप शायद खुशी के मारे उछल ही पड़ें।
अमेरिका की एक कंपनी ने ऐसी शर्ट बनाने का दावा किया है जिसे सौ दिन तक बिना धुले और प्रेस किए पहना जा सकेगा। इसे बनाने में ऊन का भी इस्तेमाल किया गया है जिसकी वजह से इसमें सिलवटें नहीं पड़ती हैं। खास विधि से तैयार होने के कारण बार-बार पहनने पर भी इसमें बदबू नहीं आती। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि हम आज के जमाने की वार्डरोब के लिए एक कंप्लीट शर्ट बनाना चाहते थे। इसके लिए हमने ऑक्सफोर्ड सॉलिड ब्लू फैब्रिक तैयार किया। यह शर्ट नीले रंग के चेक पैटर्न में उपलब्ध है। अमेरिकी कंपनी वूल एंड प्रिंस का दावा है कि इस शर्ट को कभी भी पहना जा सकता है। कंपनी ने प्रचार के लिए एक वीडियो भी जारी किया है जिसमें मालिक मैक बिशप सौ दिन से यही शर्ट पहने हुए हैं। इस खास शर्ट की कीमत 98 डॉलर (5262 रुपये) है।
Wednesday 1 May 2013
आगरा। मेरे लिए ये दूल्हा ठीक नहीं। मैं इसके साथ जिंदगी की गाड़ी नहीं खींच सकती। एक दुल्हन यह कहते हुए शादी से इन्कार कर दे तो मंडप में बैठा कोई भी दूल्हा मुश्किल में फंस सकता है। यहां ऐसा ही हुआ। ऐसे में परिजनों ने तुरंत दूसरा रास्ता निकाला।
मोहल्ले की एक दूसरी लड़की को शादी के लिए राजी किया। जब फेरे की बारी आई तो स्थिति और पेचीदा हो गयी। अचानक पहली दुल्हन का मूड बदल गया। अब एक मंडप, एक दूल्हा और दो दुल्हन हो गईं। दोनों दुल्हन फेरे को अड़ गयीं। स्थिति की जानकारी होने पर पुलिस दूल्हे को पकड़कर थाने ले आई। वहां कई घंटे चली पंचायत के बाद ही दूल्हे की किस्मत का फैसला हो सका।
शाहगंज के नगला छउआ निवासी संजीव (बदला नाम) की बरात सोमवार रात प्रकाश नगर आई थी। रात लगभग एक बजे फेरों से पहले दुल्हन ने शादी से इन्कार कर दिया। इससे बराती मुश्किल में फंस गए। दुल्हन पक्ष पर दबाव डालने को पंचायत शुरू हुई। इस बीच दुल्हन और उसकी मां बिना बताये मंडप छोड़कर चली गईं। स्थिति जगहंसाई की होती देख दूल्हे के परिजनों ने दूसरी वधु की तलाश शुरू की। उसी बस्ती की एक युवती से बिना दान दहेज शादी तय हो गई। आनन-फानन में नई दुल्हन मंडप में लाई गई। मंगलवार तड़के फेरों की रस्म शुरू होने वाली थी कि पहली दुल्हन भी वहां आ धमकी। उसने एलान कर दिया कि बरात मेरी आई है और दूल्हे के साथ फेरे लेने के लिए पहला हक उसका है। लड़के वालों के ना करने पर वह अड़ गई। वहीं दूसरी दुल्हन के परिजन भी अपनी बेटी संग फेरे दिलाने पर जम गए। मंडप में वरमाला लेकर आमने-सामने मौजूद दुल्हनों की जिद ने दूल्हे को असमंजस में डाल दिया। दोनों दुल्हन और दूल्हे के परिजनों में विवाद शुरू हो गया। कई घंटे तक चली पंचायत के बाद भी मामला नहीं सुलझा। मंगलवार सुबह आठ बजे पहली दुल्हन और उसके परिजनों ने पुलिस को बुलवा लिया। वह दूल्हे को थाने ले आई। दोपहर लगभग साढ़े तीन बजे तक भूखा-प्यासा दूल्हा थाने में बैठा रहा। थाने में दोनों पक्ष के बीच पंचायत के कई दौर चले, जिसके बाद दूसरी दुल्हन ने अपने कदम पीछे खींच लिए। आखिर दूल्हा भी पहली संग शादी को तैयार हो गया। इसके बाद ही वह थाने से बाहर निकल सका।
इंस्पेक्टर शाहगंज सतीश कुमार यादव का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच राजीनामा हो गया है।
फेरे लो या जेल जाओ
पहली दुल्हन के साथ फेरे न लेने पर दूल्हे ने जेल जाने की नौबत आ गई थी, जिसके बाद ही उसने अपना फैसला बदला। लड़की पक्ष ने उसे शादी न करने पर रिपोर्ट दर्ज कराके जेल भेजने की धमकी दे दी थी।
समोसा खाकर दूल्हे ने काटा दिन
दूल्हे को 15 घंटे से ज्यादा भूखे रहना पड़ा। दिन में समोसा खाकर पेट भरा। वैसे सोमवार को उसने दिन में इसलिए कुछ नहीं खाया था कि रात में अति विशिष्ट मेहमान बनकर खाना खाएगा, मगर रात में खाने के समय दुल्हन के तेवरों ने उसके होश उड़ा दिए।
च्यूइंग गम
मुंह में च्वीइंग गम रखकर घंटों तक चबाने वाले च्यूइंग गम के दीवाने हर उम्र के लोग हैं। दरअसल, च्यूइंग गम के अविष्कार के पीछे एक मजेदार घटना है।
1870 में थॉमस एडम्स ने गलती से इसका आविष्कार किया था। थॉमस बहुत समय से लगे थे एक ऐसा उत्पाद बनाने में जो रबड़ का विकल्प हो। थॉमस अपनी इस कोशिश में गोंद जैसे पदार्थ - चिकल से तरह-तरह के खिलौने, मास्क और बूट बनाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन वह अपनी हर कोशिश में नाकाम हुए।
तंग आकर वह अपनी प्रयोगशाला में बैठ गए और चिकल के एक टुकड़े को गुस्से में अपने मुंह में डाल लिया। यहीं से उन्हें च्यूइंग गम बनाने का ख्याल आया और उन्होंने च्यूइंग गम बनाने की फैक्ट्री शुरू की।
कभी को संक्रमण तो कभी कोई एलर्जी। एक के बाद एक परिवार में कोई न कोई बीमार पड़ ही जाता है। अगर आप अक्सर होने वाली बीमारियों की वजह कहीं और खोजते हैं तो एक नजर अपने घर के कुछ खास कोनों पर डालें। आप अपने घर में इन पांच चीजों को अगर वाकई साफ और संक्रमणरहित समझते हैं तो आपका भ्रम दूर होगा और सेहतमंद रहेंगे।
1. आपका किचन सिंक
न्यूयॉर्क के ब्रूकलिन अस्पताल की निदेशक डॉ. आइलीन एब्रूजो ने अपने अध्ययन के आधार पर माना कि किचन सिंक में टॉयलेट से अधिक कीटाणु हो सकते हैं। खासतौर पर ई कोली और सैलमोनेला जैसे बैक्टीरिया कई तरह के गंभीर संक्रमण फैलाते हैं, इसलिए किचन के सिंक को रोज साफ करें।
2. टूथब्रश
ब्रश करने के बाद आप अगर आप ब्रश गीला ही रख देते हैं तो आप बैक्टीरिया को घर बनाने के लिए भरपूर जगह दे रहे हैं। एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध के आधार पर यह दावा किया है।
3. नमकदानी
जानकर ताज्जुब होगा लेकिन 2008 में वर्जिनिया विश्वविद्यालय ने अपने शोध में नमकदानी को घर की 10 संक्रामक जगहों में से एक माना है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि नमकदानी में सर्दी-जुकाम फैलाने वाले वायरस तेजी से पनपते हैं इसलिए इनकी सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
4. टीवी रिमोट कंट्रोल
टीवी के रिमोट को अगर आप कभी भी कहीं भी रखकर छोड़ देते हैं तो जरा ठहरिए और वर्जिनिया विश्वविद्यालय के शोध पर गौर करें। इसके शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर माना है कि चूंकि बार-बार छूने की वजह से इसपर बहुत अधिक कीटाणु होते हैं। ऐसे में डस्टिंग को दौरान समय-समय पर रिमोट को एल्कोहल या ब्लीच से साफ करें।
5. कंप्यूटर का कीबोर्ड
ब्रिटिश कन्ज्यूमर ग्रुप ने अपने शोध में माना कि अक्सर लोग कंप्यूटर पर टाइप करते-करते खाते-पीते हैं, छींकने जैसी गतिविधिया करते हैं जिससे कीबोर्ड पर कीटाणु अधिक मात्रा में होते हैं। शोध के दौरान उन्होंने पाया कि कई बार कीबोर्ड पर टॉयलेट सीट से भी ज्यादा कीटाणु हो सकते हैं। इसलिए कीबोर्ड को समय-समय पर साफ करते रहें।
मंगलवार, 7 मई, 2013 को 16:37 IST तक के समाचार
रूवैदा सलाम शायद ऐसी पहली कश्मीरी मुस्लिम लड़की हैं जिन्होंने परीक्षा पास की है, लेकिन ये क़ामयाबी उन्हें आसानी से हासिल नहीं हुई.
जब रूवैदा ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की तो उनके रिश्तेदार बहुत खुश थे और उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रहे थे. लेकिन सीमावर्ती कुपवाड़ा ज़िले की रहने वाली इस लड़की की नज़र, शादी करके एक आम ज़िंदगी बिताने की बजाय सिर्फ भारतीय प्रशासनिक सेवा पर थी. वो कहती हैं "मेरी शादी मेरे रिश्तेदारों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता थी, लेकिन मैंने हर तरह के दबाव का विरोध किया. रूवैदा भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की उन तीन लड़कियों में से हैं जिन्होंने इस साल सिविल सेवा परीक्षा पास की है. अन्य दो लड़कियां राज्य के जम्मू क्षेत्र से हैं. तीन साल पहले तक,कश्मीर घाटी या कहें कि पूरे जम्मू-कश्मीर का नाम शायद ही कभी सिविल सेवा को लेकर चर्चा में आया था, लेकिन नया मोड़ उस वक़्त आया जब घाटी के सीमावर्ती ज़िले कुपवाड़ा के निवासी शाह फैसल साल 2010 में आईएएस की परीक्षा में टॉपर बने. शाह फैसल की सफलता ने बड़ी संख्या में कश्मीरी लड़के-लड़कियों को प्रेरित किया. अब हर साल जम्मू-कश्मीर से कुछ उम्मीदवार भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सफल होते हैं. इस साल 11 उम्मीदवारों ने यह परीक्षा पास की है जो कि सिविल सेवा में राज्य की अब तक की सबसे बड़ी सफलता है.
सहरिश बनीं आईएएस
जम्मू क्षेत्र के सीमावर्ती जिले किश्तवाड़ की रहने वाली सैय्यद सहरिश असगर राज्य स्तर पर अव्वल आई हैं. इस साल सिविल सेवा के 998 सफल उम्मीदवारों में सहरिश की रैंक 23वीं है. इस परीक्षा में रूवैदा की रैंक 820वीं और जम्मू की अंचिता पंडोह की रैंक 446वीं है. राज्य भर में अव्वल आने वाली सहरिश कहती हैं कि जम्मू-कश्मीर में दो दशकों तक सशस्त्र संघर्ष के बाद अब शान्ति आई है, जिससे अधिक से अधिक युवाओं में इस एलिट सेवा में शामिल होने की ख्वाहिश जगी है. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को लेकर राज्य के युवाओं में आए बदलाव के पीछे एक आईपीएस अधिकारी अब्दुल गनी मीर का प्रयास है. 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी अब्दुल गनी मीर को झारखंड राज्य में तैनात किया गया था. 2006 में कश्मीर लौटने के बाद उन्होंने पाया कि राज्य के युवा भारतीय सिविल सेवा के बारे में बहुत कम जानते हैं.
अब्दुल गनी मीर का प्रयास
सिविल सेवा परीक्षा में सहरिश असगर की रैंक 23वीं है. पिछले साल वो आईपीएस के लिए चुन ली गई थीं.
उसके बाद उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर घाटी भर के कॉलेजों में सेमिनार आयोजित करना शुरू किया.
उन्होंने कश्मीरी लड़के और लड़कियों को यह आश्वासन दिया कि अखिल भारतीय सिविल सेवा पास करना कोई बड़ी बात नहीं है. वो बताते हैं, “युवाओं में बहुत तरह के संकोच थे. मैंने उनसे कहा कि अगर मैं कर सकता हूं तो तुम लोग क्यों नहीं कर सकते." उसके बाद उन्होंने ‘इनिशिएटिव फॉर कॉम्पिटीशन प्रमोशन इन जम्मू कश्मीर’ नाम की एक संस्था बनाई जिसका काम कश्मीरी युवाओं में आईएएस की परीक्षा के प्रति रुचि और जागरुकता बढ़ाना है. रूवैदा सलाम भी कहती हैं कि मीर साहब ने उन्हें बहुत प्रोत्साहित किया.
वो कहती हैं, “कई लड़कियां आईएएस की परीक्षा में शामिल होने से इसलिए हिचकती थीं कि उन्हें लगता था कि उन्हें गृह राज्य के बाहर तैनात किया जाएगा. लेकिन उनकी सोच 2011 में बदल गई जब राज्य के लद्दाख क्षेत्र से एक मुस्लिम महिला उवैसा इकबाल ने सिविल सेवा में कामयाबी हासिल की.”
सिविल सेवा में सफल होने के बाद रूवैदा सलाम कहती हैं कि आईएएस बनने के बाद अब उनकी पहली प्राथमिकता महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करना है.
“मैं जहां भी तैनात होऊंगी, वहाँ में महिलाओं के साथ सहानुभूति रखूंगी और उनकी मदद करने की कोशिश करूंगी“
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार भारतीय समाज के सामने एक बड़ी समस्या है और इसे जड़ से उखाड़ना बहुत मुश्किल है. लेकिन वो अपने स्तर पर प्रयास करेंगी.